
भारतीय सिनेमा की गायकी को पहली बार औपचारिकता के ताने-बाने से मुक्त कर देने का श्रेय उन्हीं को जाता है। कुंदनलाल सहगल की छाया से निकले मोहम्मद रफ़ी और मुकेश 1950 के दशक में जिस आज़ादी को अपनाने से झिझकते रहे थे। लेकिन किशोर कुमार ने उसे एक झटके में हासिल कर दिखाया था।
ज़ाहिर स्वच्छन्दता के बावजूद उनके गायन के मूल में परंपरा के लिए गहरा सम्मान हमेशा बना रहा। दुनिया भर के लोकप्रिय संगीत से प्रेरणा हासिल करने के बावजूद वे कुंदनलाल सहगल को अपना आदर्श मानते थे जिसकी दो मिसालें अप्रासंगिक नहीं होंगी।
किशोर के बड़े भाई अशोक कुमार अपने ज़माने के बहुत बड़े स्टार थे। उनके घर अक्सर दावतें होतीं थी। उपयुक्त मौक़ा देख कर अशोक कुमार किशोर को बुलाते और गाने के लिए कहते।