
करवा चौथ पति और पत्नी के बीच के प्रेम को दर्शाने वाला बेहद निष्ठापूर्ण व श्रद्धा भाव से उपवास रखने का त्योहार है। आज पूरे देश में धूमधाम से इस त्योहार को मनाया जा रहा है। इस साल हिंदू पंचांग के अनुसार 13 अक्टूबर को करवा चौथ मनाया जाने वाला हैं। प्राचीनकाल से महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करती चली आ रही हैं। इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की दीर्घायु के लिए व्रत करती है और ईश्वर से आशीर्वाद प्राप्त करती है। यह त्योहार क्यों मनाया जाता है और कैसे शुरू हुई इसको मनाने की परंपरा आज हम आपको इसके बारे में बताने जा रहे हैं।
क्यों किया जाता है करवा चौथ
पौराणिक काल से यह मान्यता चली आ रही है कि पतिव्रता सती सावित्री के पति सत्यवान को लेने जब यमराज धरती पर आए तो सत्यवान की पत्नी ने यमराज से अपने पति के प्राण वापस मांगने की प्रार्थना की। उसने यमराज से कहा कि वह उसके सुहाग को वापस लौटा दें। मगर यमराज ने उसकी बात नहीं मानी। इस पर सावित्री अन्न जल त्यागकर अपने पति के मृत शरीर के पास बैठकर विलाप करने लगती हैं। काफी समय तक सावित्री के हठ को देखकर यमराज को उस पर दया आ गई। यमराज ने उससे वर मांगने को कहा।
इस पर सावित्री ने कई बच्चों की मां बनने का वर मांग लिया। सावित्री पतिव्रता नारी थी और अपने पति के अलावा किसी के बारे में सोच भी नहीं सकती थी तो यमराज को भी उसके आगे झुकना पड़ा और सत्यवान को जीवित कर दिया। तभी से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए महिलाएं सावित्री का अनुसरण करते हुए निर्जला व्रत करती हैंं।
करवा चौथ का व्रत मुख्य रूप से देश के उत्तर और पश्चिम राज्यों की महिलाएं रखती हैं। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल से ही इन राज्यों के पुरुष सेना में काम करते आ रहे हैं और पुलिस में भर्ती होते रहे हैं। तो इनकी सलामती के लिए इन राज्यों की महिलाएं करवा चौथ का व्रत करती हैं। जिससे कि उनके पति की दुश्मनों से रक्षा हो सके और उनकी आयु लंबी हो। वहीं जिस वक्त यह त्योहार मनाया जाता है उन दिनों में रबी की फसल यानी गेहूं की फसल बोई जाती है। कुछ स्थानों पर महिलाएं करवा में गेहूं भी भरकर रखती हैं और भगवान को अर्पित करती हैं। ताकि उनके घर में गेहूं की शानदार फसल पैदा हो।
करवा चौथ व्रत की उत्तम विधि
सूर्योदय से पहले स्नान कर व्रत रखने का संकल्प कर लें। फिर मिठाई, फल, सेवई और पूड़ी खाकर व्रत शुरू करे। इसके बाद शिव परिवार और श्रीकृष्ण की स्थापना करें। गणेश जी को पीले फूलों की माला, लड्डू और केले चढ़ाएं। तथा भगवान शिव और पार्वती को बेलपत्र और श्रृंगार की चीजें अर्पित करें। साथ ही श्री कृष्ण को माखन-मिश्री और पेड़े का भोग लगाएं। उनके सामने मोगरे की अगरबत्ती और घी का दीपक जलाएं। और मिट्टी के करवे पर रोली से स्वस्तिक बनाएं। करवे में दूध, जल और गुलाबजल मिलाकर रखें और रात को छलनी से चांद के दर्शन करें। और चन्द्रमा को अर्घ्य दें। करवा चौथ के दिन महिलाओं को करवा चौथ की कथा सुननी चाहिए। और कथा सुनने के बाद अपने घर के सभी बड़ों के पैर जरूर छुएं। इस दिन पति को प्रसाद देकर भोजन कराएं और बाद में खुद भी भोजन करें।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ व्रत करने का विधान है। इस व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है। स्त्री किसी भी आयु, जाति, संप्रदाय की हो, सबको इस व्रत को करने का अधिकार है। करवा चौथ के दिन गणेशजी को घी-गुड़ का भोग लगाकर आर्थिक विघ्नों को दूर करने के लिए प्रार्थना करें। पूजा के बाद घी और गुड़ किसी गाय को खिला दें। इससे धन संबंधी समस्याएं दूर हो जाती है। अगर आपका जीवनसाथी आपको नजरअंदाज करता है तो, करवा चौथ के दिन 5 बेसन के लड्डू, आटे और चीनी से बने 5 पेड़े, 5 केले, 250 ग्राम चने की भीगी दाल किसी गाय को अपने हाथों से खिलाएं और उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए समस्या को दूर करने की प्रार्थना करें। इस दिन विघ्नहर्ता को 21 गुड़ की गोलियां बनाकर दुर्वा के साथ चढ़ाएं। इससे घर-परिवार में प्रेम और सहयोग का वातावरण बना रहता है और मनोकामनाएं पूरी होंगी।